गांधारी बना मीडिया – मोह और खनक से मीडिया ने बांध ली आँखों पर पक्षपात की पट्टी।

मीडिया अर्थात माध्यम जिसका धर्म हे कि समाज के सामने सच लिखे,बोले और दिखाये पर अब ये धर्म या मीडिया के सिद्धांत भौतिकवाद एवं  भ्रस्टाचार के दलदल में गौते लगा रहे हे और मीडिया का क्रूप एवं घिनोना पक्षपाती चेहरा आम जनता के सामने आरहा हे। आज अधिकांस खबरे चलती या दिखती वही हे जो सौदेबाज़ी के अबैध संतान होती हे।
  अभी ताज़ा उदहारण पांच राज्यो के चुनाव परिणाम पर मीडिया कवरेज हे।पश्चिम बंगाल,केरल,आसाम,तमिलनाडु,और पांडिचेरी के चुनाव परिणाम में भजपा को भविष्य की ताक़त बताते हुए कांग्रेस को भूत की या इतिहास की पार्टी की संज्ञा दे दी गयी साथ ही भजपा के महिमा मंडन  और नियोग से बनी आसाम में बीजेपी की सरकार के जश्न के गुणगान में अम्मा और ममता की पार्टी की बड़ी सफलता को बोना बनाकर पेस कर दिया।जो भारतीय मीडिया के शर्मनाक एवं पक्षपात पूर्ण रवैये के शिवा कुछ नहीं हे।
           यदि हम पांच राज्यो के परिणाम के आंकड़ो का विश्लेषण करे तो देखते हे कि पश्चिम बंगाल में ममता की सबसे बड़ी जीत हे और यहाँ कांग्रेस को 42 सीट एवं बीजेपी को 4 सीट मिली पर मीडिया की खवर बीजेपी को बंगाल में सफलता।केरल में कांग्रेस को 51 और बीजेपी को 1 सीट मीडिया की न्यूज़ पर केरल में बीजेपी ने इतिहास रचा।तमिलनाडु कांग्रेस 9 बीजेपी 0,पुण्डिचेरी बीजेपी 0 कांग्रेस 14 और आसाम बीजेपी 60 और कांग्रेस 23 पर चर्चा सिर्फ आसाम की की आसाम में बीजेपी ने इतिहास रचा।कुल 822 में से कांग्रेस को 139 और बीजेपी को सिर्फ 65 पर मीडिया ने कहा  की कांग्रेस के बुरे दिन और बीजेपी के अच्छे दिन इसके आलावा और भी खतरनाक और अतिशयोक्ति पूर्ण संज्ञा से बीजेपी को नवाज़ा गया। ये तो बर्तमान का उदाहरण हे पर भूत देखे तो मीडिया वहाँ भी निष्पक्ष नहीं रहा जेसे मोदी की फ़र्ज़ी डिग्री कांड………..जेसे अनेक उदाहरण हे जिनमे मीडिया ने महाभारत के एक पात्र गंधारी जेसी भूमिका निभायी हे जो भारतीय लोकतंत्र के लिये और भविष्य के मीडिया के लिये खतरनाक हे क्यों मीडिया लोकतंत्र के चोथे स्तम्भ के रूप में जाना जाता हे और जनता को मीडिया से बहुत आशाये रहती हे लेकिन यदि मीडिया उद्द्योग् पतियो और राजनेताओ के हाँथ का खिलौना बन जायेगा तो ये देश और समाज तथा स्वयं मीडिया के लिये शुभ संकेत नहीं हे।( उपरोक्त लेख मीडिया के स्याह पक्ष के लिये हे मीडिया के हंसो के लिये नहीं ।

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